Friday, October 20, 2017

देवता व राक्षस

दुनिया में दो तरह के प्राणी होते हैं। कुछ प्राणी जो प्राप्त करते हैंउसे वे अपने तक ही सीमित रखते हैं और कुछ प्राणी उसे बांट देते हैं। अगर आप बांटने का चुनाव करते हैं तो आप देव बन जाते हैं।

अगर आप उसे जमा करते जाते हैं तो आप राक्षस बन जाते हैं। आप राक्षस इसलिए नहीं बनतेक्योंकि आप जो कर रहे हैंवो दूसरों की नजरों में बुरा हैबल्कि इसलिए बनते हैं क्योंकि आपमें देने का कोई भाव नहीं है। देव ऐसे प्राणी होते हैं जो तेजस्वी होते हैंजिनमें बिखेरने का गुण होता है।

देने का भाव होने से मतलब यह नहीं है कि ये चीज देना या वो चीज देना। इसका मतलब बस इतना है कि आपकी जीवन प्रक्रिया ही ऐसी हो जाए कि आप हमेशा कुछ दे रहे हों। जो भी दिया जा सकता हैउसे दे दिया जाएजहां भी उसकी जरूरत हो। इसमें यह महत्वपूर्ण नहीं है कि आपको कहां देना हैकितना देना है और क्या देना है। इस तरह के हिसाब से सब बेकार हो जाता है। अगर आप अपने जीवन को मैं क्या पा सकता हूं’ से मैं क्या दे सकता हूं’ में रूपांतरित कर देंतो आप देव बन जाते हैं।

सिर्फ परोपकार के बारे में सोच कर आप तेजस्वी नहीं बन जाते। आप तेजस्वी तब बनते हैंजब आपके भीतर रख लेने का भाव खत्म हो जाता है। आप जीवन को थोड़ा ध्यान से देखने की कोशिश करें। आप पाएंगे कि यहां कुछ भी ऐसा नहीं है जो दिया जा सकेक्योंकि यहां ऐसा कुछ भी नहीं है जो आप अपने साथ लेकर आए थे। आज आपके पास जो कुछ भी हैवह सब कुछ आपने इसी धरती से लिया है। जरा सोच कर देखिए, ‘अगर मैं सब कुछ दे दूंतो मेरे साथ क्या होगा?’ तब होगा ये कि सारी दुनिया आपकी हो जाएगी। हम अकसर सोचते हैं, ‘अगर मैं यह दे दूंगातो इतना चला जाएगाअगर मैंने वह दे दिया तो उतना चला जाएगा।’ जबकि ये सब हिसाब-किताब बेकार हैघटिया है। सच तो यह है कि अगर आप अपना जीवन अपने आसपास मौजूद हर इंसान से बांटते रहते हैंउनको देते रहते हैंतो हर कोई आपकी देखभाल करेगा।

मुझे क्या करना चाहिएअपनी तनख्वाह का कितना हिस्सा मुझे दान करना चाहिए?’ बात इसकी नहीं है। आपको खुद को रूपांतरित करना होगा। क्या आपको लगता है कि एक नारियल का पेड़ ये हिसाब लगाता है कि मुझे कितने नारियल देने चाहिएअगर मैं सौ नारियल दे दूंगातो ये लोग ज्यादा पैसे बना लेंगे।
चलो मैं पचास नारियल ही देता हूं। क्या आपको लगता है कि नारियल का पेड़ खुद को रोक रहा हैसच तो यह है कि नारियल का पेड़ जितना भी पोषण हो सकता हैउसे पाने की कोशिश करता है और फिर ज्यादा से ज्यादा नारियल देता है। क्या आपको भी इसी तरीके से नहीं जीना चाहिए?

इस जीवन को तेजस्वी बनाने के लिए आपको धर्मग्रंथ पढ़ने की जरूरत नहीं है- ज्यादा धर्मग्रंथ आपको हजम नहीं होंगे। देवताओं को पाने के लिए ऊपर या नीचे मत देखिए। इस अस्तित्व में बस एक प्राणी को चुन लीजिए। अगर आपको कीड़ा सही लगता है तो कीड़ा ही ले लीजिए। अगर आपको पेड़ अच्छा लगता है तो पेड़ को चुन लीजिए। बस किसी भी एक जीवन को चुन लेंफिर उसे खूब ध्यान से देखें। आप पाएंगे कि सारे के सारे प्राणी जितना ज्यादा से ज्यादा जीवन हो सकता हैवे दे रहे हैं।

ये सिर्फ इंसान ही हैजो चीजें अपने पास रोके रखने की कोशिश कर रहा है। शायद इसकी वजह यह है कि उसकी बुद्धि तो तार्किक हैलेकिन वह उसका सही इस्तेमाल करना नहीं जानता। इस अस्तित्व नेसृष्टा ने आपको बुद्धि इसलिए दी हैकि आप उसका वैसे इस्तेमाल कर सकेंजैसे संसार के दूसरे प्राणी नहीं कर सकते- ऊंचा उठने के लिएअपने रूपांतरण के लिएन कि संचय के लिए। यह बुद्धि आपको इसलिए दी गई थीकि आप उन चीजों तक पहुंच सकेंजो इस दुनिया से परे की हैं। प्रकृति को विश्वास था कि आप उस असीम प्रकृति को खोजने की कोशिश करेंगेन कि हिसाब लगाने में उलझ जाएंगे।

Sunday, October 8, 2017

दोबारा जन्म लेने की संभावना से मुक्ति

जिसे आप आध्यात्मिक प्रक्रिया कह रहे हैं वह बस यही है। यह आत्मघात का एक गूढ़ तरीका है।
यह स्थूल शरीर की हत्या के संबंध में नहीं है। आप अपने अंदर शरीर बनने की बुनियाद को नष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं। आप उस मूलभूत ढांचे को नष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं जिससे एक शरीर बन सकता है। कार्मिक तत्व जो आकाशीय, प्राणिक और मानसिक शरीर के रूप में होते हैं, यह भौतिक शरीर सिर्फ इन्हीं तत्वों से बनता है। तो आप आध्यात्मिक प्रक्रिया के द्वारा उसे नष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं। अपनी जागरूकता के द्वारा, अपने अभ्यास के द्वारा, अपने प्रेम के द्वारा, अपनी भक्ति के द्वारा, आप बस यही करने की कोशिश कर रहे हैं कि जन्म लेने की या दूसरा शरीर धारण करने की संभावना को ही नष्ट कर दिया जाए, उस नींव को ही नष्ट कर दिया जाय जिसके ऊपर एक भौतिक शरीर बन सकता है। दूसरे शब्दों में, हम रीसाइक्लिंग-बिन में बार-बार जाने की संभावना को खत्म करने का प्रयास कर रहे हैं। माँ का गर्भ बस रीसाइक्लिंग की एक थैली है। बार बार….. एक ही प्रक्रिया से गुज़रना। तो हम उसे समाप्त करना चाहते हैं।

मानसिक, प्राणिक और आकाशीय शरीर को हम नहीं छू सकते

आप जिसे व्यक्ति कहते हैं वह बस एक बुलबुले जैसा है। इस बुलबुले में स्वयं का कोई तत्व नहीं होता।
वहाँ हवा थी। उसने अपने चारों ओर एक आवरण बना लिया और अब अचानक उसका स्वयं का एक अलग गुण हो गया। मोटे बुलबुले हैं, पतले बुलबुले हैं, मज़बूत बुलबुले हैं, कमज़ोर बुलबुले हैं, बड़े बुलबुले हैं, छोटे बुलबुले हैं – लोगों की तरह ही। अन्य प्राणियों की तरह भी।
लेकिन जब बुलबुला फूटता है तो बुलबुले के अंदर का तत्व कहाँ चला जाता है? हवा ने उसे वापस ले लिया; वायुमंडल ने उसे वापस ले लिया। इस प्रकार, एक बुलबुला आकाशीय शरीर के रूप में, प्राणिक शरीर के रूप में, मानसिक शरीर के रूप में और स्थूल शरीर के रूप में बनता है। स्थूल शरीर को हम जिस क्षण चाहें गोली मार सकते हैं। अगर हम चाहें तो स्थूल शरीर को दो हिस्सों में काटना की क्षमता हमारे अंदर है, लेकिन दूसरे शरीरों को काटने में हम समर्थ नहीं हैं। जिसे आप अस्तित्व कहते हैं, सिर्फ वही यह कर सकता है।

भौतिक अस्तित्व छोटी सी घटना है

अगर आप दिन में आकाश की ओर देखते हैं तो सूरज दिखाई देता है। आपके अनुभव में वह सबसे अधिक प्रबल होता है।
रात में अगर आप ऊपर देखते हैं तो तारे आपके अनुभव में सबसे अधिक प्रबल होंगे, लेकिन सूरज और तारे दोनों ही – और सूरज भी एक तारा ही है – विराट आकाश की तुलना में बहुत तुच्छ हैं। हालांकि आम तौर पर यह कभी आपके अनुभव में नहीं आता। तो आकाश की विशालता का ही वास्तविक अस्तित्व है। सूरज, तारे, आप और मैं – हम सभी सिर्फ छोटी-छोटी घटनाएँ हैं, वाकई में क्षणिक घटनाएँ हैं हम।
आज आधुनिक विज्ञान आपको यह कह रहा है कि सूरज की भी एक आयु है। यह स्वयं जल कर धीरे-धीरे खत्म हो रहा है। जैसे कि आप अपने जीवन को जला कर खत्म करते जा रहे हैं, उसी प्रकार सूरज को भी बुखार चढ़ा है और वह भी अपने जीवन को जला कर खत्म कर रहा है। आपका सामान्य तापमान अट्ठनवे दशमलव छह डिग्री फॉरेनहाइट है, सूर्य का सामान्य तापमान एक करोड़ पचास लाख डिग्री सेल्सियस है – लेकिन उसकी भी एक आयु है। वह भी जल रहा है। एक दिन वह पूरी तरह जल जाएगा। तो आप जो कुछ भौतिक अस्तित्व के रूप में देख रहे हैं, वह सिर्फ एक छोटी-सी घटना है। वास्तविक अस्तित्व एक विस्तार है, एक रिक्तता है।