Monday, November 28, 2016

मोक्ष

आत्मा अकेले आती है ,अकेले जाती है ,हम सभी यह जानते हैं ,किंतु आत्मा मुक्ति तो अकेले हो सकती है पर मोक्ष अकेले नहीं होती ,क्योकि आत्मा की उतपत्ति पर उसमे विभाजन हो जाता है और जब तक दोनों भाग आपस में नहीं मिलते मोक्ष सम्भव नहीं ।मुक्ति एक अवस्था है जिसमे जन्म मरण बन्द हो जाता है किंतु आत्मा का अस्तित्व बना रहता है जबकि मोक्ष में आत्मा का ही अस्तित्व समाप्त हो जाता है और उसका कोई गुण नहीं बचता ,वह निराकार ,निर्गुण ऊर्जा में विलीन हो जाता है ।एकल आत्मा अथवा एकल व्यक्ति मुक्ति तो पा लेता है किन्तु मोक्ष तबतक संभव नहीं जबतक उसके आत्मा युगल [आत्मा के आधे हिस्से ] से उसका मिलन नहीं हो जाता |जब तक दोनों भाग एक साथ नहीं मिलते मोक्ष संभव नहीं |यही वह तथ्य है जिसके लिए हजारों योगी हजारों वर्ष तप करते रहते है ,अथवा अपने अर्ध आत्मा युगल का इंतजार करते रहते हैं ,समाधि ,पहाड़ अथवा कंदराओं में ,जबकि मुक्ति तो जब चाहें मिल जाए उन्हें [व्यक्तिगत सोच]......................................................................हर-हर महादेव

देवी देवता आने का सच

हमने बहुतों को देवी देवता आते देखा सुना है जिसके आगे भयभीत हो हम सर झुक देते हैं और बात मानने लगते है ।अनाप शनाप पूजा पाठ करने लगते हैं ।वास्तव में 99 प्रतिशत मामलों में यह देवी देवता नही होते और 99 प्रतिशत मामलों में शिकार महिलाएं ही होती हैं।क्यों पुरुष को देवी देवता नही आते या कम आते हैं।कारण देवी देवता हों तब तो आएं ।यह छुद्र शक्तियां अथवा भूत प्रेत होते हैं जो महिलाओं को नियंत्रित कर खुद को देवी देवता के रूप में पेश कर पूजा लेकर अपनी शक्ति बढ़ाते हैं और अपनी इच्छा पूर्ण करते हैं।देवी देवता केवल गम्भीर आवेश देते हैं जिससे व्यक्ति चेतनाशून्य होता है बकवास नही करता या झूमता नही उस समय।खुद शरीर भारी और निष्क्रिय होने लगता है।ऐसा पुरुष महिला दोनों के साथ हो सकता है ।जो खुद को बार बार देवी देवता आने ।आशीर्वाद।प्रलाप।भविष्य भूत बताने की घटनाएं बताते हैं वह सभी आत्मिक शक्तियों के काम हैं अथवा छुद्र पैशाचिक शक्तियों के ।इन्हें देवी देवता कहना भी देवता का अपमान है।इनके अपने उद्देश्य और निहित स्वार्थ होते हैं।यह पूजा लेकर कुलदेवता की पूजा पहले रोकते हैं फिर ईष्ट तक आपकी पूजा नही पहुचने देते ।इन्हें किसी पीढ़ी में आगे पूजा न मिले तो पीढ़ी नष्ट होने लगती है ।इनमे योगिनी।डाकिनी।ब्रह्म।सती।प्रेत।पिशाच।स्थानिक भैरव जैसी शक्तियां हो सकती हैं।यह खुद को विभिन्न देवियों अथवा देवताओं के रूप में प्रदर्शित करते हैं ताकि लोग इन्हें पूजें और इन्हें बल मिले ।इनका आवेश मंदिरों आदि अथवा पूजा पाठ के स्थान पर अधिक आता है क्योंकि वहां इन्हें विचलन महसूस होता है और यह आवेश देकर खुद को देवी देवता साबित करने लगते हैं ।उच्च शक्ति पीठों में यह कम होता है जबकि सामान्य मंदिर ,भजन वाले स्थानों पर अधिक क्योकि उच्च शक्ति पीठों पर इनकी ऊर्जा दबने लगती है और सामान्य स्थानों या मंदिरों पर ऐसा नहीं होता ।यह अधिक से अधिक पूजा और मन की अतृप्त इच्छाओं की पूर्ति के लिए अधिक से अधिक लोगों के सामने खुद को देवी देवता साबित करते हैं ।आत्मिक शक्तियां होने से यह व्यक्ति के जीवन की घटनाएं भी बता देते हैं जिससे लोग प्रभावित हो जाते हैं पर इनकी पहुँच भविष्य तक नहीं होती इसलिए तुक्के मॉरते हैं ।जिन पर ऐसे देवी देवता आते हैं उनमे से  अधिकतर के अंत समय रोगों और कष्ट में गुजरते हैं ।जबकि वास्तविक देवी देवता की ऊर्जा वालों का अंत समय सुखद होता है ।इसलिए भ्रम से बचना बेहतर ।।।।।।हर हर महादेव ।।।।।।।

Monday, November 21, 2016

एक बेहतर सोच

              *हर एक की सुनो👂🏻*
             *ओर हर एक से सीखो*
                 *क्योंकि हर कोई,*
              *सब कुछ नही जानता*
                   *लेकिन हर एक*
       *कुछ ना कुछ ज़रुर जानता हैं!*

*स्वभाव रखना है तो उस 🔥दीपक की तरह रखिये, जो बादशाह के महल में भी उतनी ही रोशनी देता है, जितनी की किसी गरीब की झोपड़ी ⛺में….*💚
         🌺शुभ प्रभात🌺 🅰🅿

Thursday, November 17, 2016

साहसी लोग

जीवन में साहस वाले लोग ही कुछ असाधारण कर दिखाते हैं। हजारों मील तक फैले देश पर उनका ही  सिक्का जमता है। विश्व इतिहास में उनका ही नाम अमर होता है। साहसी व्यक्ति की चाहे कोई कितनी भी आलोचना करे, उसे अपने नेतृत्व के बारे में संदेह नहीं होता है। उसकी प्रतिज्ञा भागीरथ की प्रतिज्ञा होती है। उसका हठ हमीर का हठ होता है। वे झिझकते नहीं, साहस नहीं गंवाते, अपने जीवन के विकास में आयी प्रत्येक बाधा को वह आंतरिक हो या बाह्य उखाड़ फेंकते हैं। वे कभी विचलित नहीं होते धीरे-धीरे उनकी शक्ति विराट् शक्ति का रूप धारण करती जाती है। उन्हें अपने निर्णय के ऊपर कभी संशय नहीं होता।
     कठिन समय आए, सनसनीखेज घटनाएं हों जाएं, पूंजी समाप्त हो जाए, लोग निरूत्साहित करें, संगी साथी छोड़ जाएं, कुछ भी हो जाए, वे आत्मविश्वास में कभी क्मी नहीं आने देते। अपने भविष्य पर एकमात्र दृष्टि जमाए वे आगे बढ़ते जाते हैं।
उनकाआत्म विश्वास का पल्ला पकड़ते ही उनका अधिकार क्षेत्र असीमित हो जाता है व वे जितनी धन राशि चाहें लोग उनको देते हैं व खुशी से देते हैं।
इसलिए अटूट साहस का लेकर कोई भी लक्ष्य पथ पर अग्रसर हो सकता है।
साहस ही वह शस्त्र है जिससे सभी संकट कट जाते हैं। उद्देश्य पर मर मिटने की कसम खाने वाले सदा ही विजयी हुए हैं। शिक्षा संबंधी योग्यता, प्रभावशाली सिफारिश, ऊंचे वंश में जन्म, सौभाग्यशाली नक्षत्र में जन्म कुछ भी काम नहीं आता अगर आपमें साहस नहीं है।

Wednesday, November 9, 2016

ईश्वर

क्या वाकई इस धरती पर ईश्वर का अस्तित्व हैं .......?
अब अगर मैं किसी ऐसी चीज़ के बारे में बात करूँ जो आपके वर्तमान अनुभव में नहीं है, तो आप उसे नहीं समझ पाएंगे। मान लीजिए, आपने कभी सूर्य की रोशनी नहीं देखी और इसे देखने के लिए आपके पास आंखें भी नहीं हैं। ऐसे में अगर मैं इसके बारे में बात करूं, तो चाहे मैं इसकी व्याख्या कितने ही तरीके से कर डालूं, आप समझ नहीं पाएंगे कि सूर्य की रोशनी होती क्या है। इसलिए कोई भी ऐसी चीज़ जो आपके वर्तमान अनुभव में नहीं है, उसे नहीं समझा जा सकता। इसलिए इसके बाद जो एकमात्र संभावना रह जाती है, वह है कि आपको मुझ पर विश्वास करना होगा। मैं कह रहा हूँ, वही आपको मान लेना होगा। अब अगर आप मुझ पर विश्वास करते हैं, तो यह किसी भी तरह से आपको कहीं भी नहीं पहुंचाएगा। अगर आप मुझ पर विश्वास नहीं करते हैं, तब भी आप कहीं नहीं पहुँच पाएंगे। मै आपको एक कहानी सुनाता हूं।
एक दिन, सुबह-सुबह, गौतम बुद्ध अपने शिष्यों की सभा में बैठे हुए थे। सूरज निकला नहीं था, अभी भी अँधेरा था। वहां एक आदमी आया। वह राम का बहुत बड़ा भक्त था। उसने अपना पूरा जीवन ”राम, राम, राम” कहने में ही बिताया था। इसके अलावा उसने अपने पूरे जीवन में और कुछ भी नहीं कहा था। यहां तक कि उसके कपड़ों पर भी हर जगह ”राम, राम” लिखा था। वह केवल मंदिरों में ही नहीं जाता था, बल्कि उसने कई मंदिर भी बनवाए थे। अब वह बूढ़ा हो रहा था और उसे एक छोटा सा संदेह हो गया। ”मैं जीवन भर ‘राम, राम’ कहता रहा, लेकिन वे लोग जिन्होंने कभी ईश्वर में विश्वास नहीं किया, उनके लिए भी सूरज उगता है। उनकी सांसें भी चलती हैं। वे भी आनंदित हैं एवं उनके जीवन में भी खुशियों के कई मौके आए हैं। मैं बैठकर बस ‘राम, राम’ कहता रहा। मान लो, जैसे कि वे कहते हैं, कि कोई ईश्वर नहीं है, तब तो मेरा पूरा जीवन बेकार चला गया।”
वह जानता था कि ईश्वर है लेकिन उसे एक छोटा सा संदेह हो गया, बस इतना ही था। ”एक अलौकिक आदमी यहां मौजूद है, उससे बात कर मुझे अपना संदेह दूर कर लेना चाहिए।” लेकिन सबके सामने यह प्रश्न कैसे पूछा जाए? इसलिए वह सूर्योदय से पहले आया, जबकि अंधेरा अभी पूरी तरह से छंटा नहीं था। एक कोने में खड़े होकर उसने बुद्ध से प्रश्न किया, ‘क्या ईश्वर है या नहीं?” गौतम बुद्ध ने उसे देखा और कहा, ‘नहीं’। शिष्यों के बीच से ‘उफ्फ ’ की आवाज़ निकली, उन्होंने राहत भरी सांस ली। ईश्वर है या नहीं, यह द्वंद् उनमें प्रतिदिन चलता रहता था। उन्होंने कई बार गौतम से यह प्रश्न किया था और जब भी यह प्रश्न किया जाता था, गौतम चुप रह जाते थे। यह पहला मौका था, जब उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा, ‘नहीं’।
ईश्वर के बिना रहना कितना आनंददायक था। शष्यों के बीच खुशी की लहर दौड़ गई। वह दिन सबके लिए एक खुशी का दिन था। शाम को, फिर बुद्ध अपने शिष्यों के बीच बैठे हुए थे, उसी समय एक दूसरा आदमी आया। वह एक ‘चार्वाक’ था। क्या आप जानते हैं कि चार्वाक कौन होता है? उन दिनों एक समूह हुआ करता था, जिन्हें चार्वाक कहा जाता था। वे पूरे भौतिकवादी लोग होते थे। वे किसी चीज़ में विश्वास नहीं करते। वे केवल उसी में विश्वास करते थे, जिसे वे देख सकते थे। इसके अलावा, उनके लिए किसी और किसी चीज़ का अस्तित्व नहीं होता।
अब वह बूढ़ा हो रहा था और उसके मन में एक छोटा सा संदेह आ गया। “मैं पूरे जीवन लोगों को कहता रहा कि ईश्वर नहीं है। मान लो अगर ईश्वर है तो जब मैं वहां जाऊंगा तो क्या वह मुझे छोड़ेगा? लोगों से वह नरक के बारे में कई बार सुन चुका था। अब उसे थोड़ी सी शंका हो गई। वह जानता है कि ईश्वर नहीं है, वह अपना पूरा जीवन यही साबित करता रहा, लेकिन उसे थोड़ा सा संदेह हो गया। ‘मान लो अगर ईश्वर है? तो संकट क्यों मोल लिया जाए? शहर में एक अलौकिक पुरुष है। उनसे जऱा मैं पूछ ही लूँ।” इसलिए देर शाम को, अंधेरा होने के बाद वह गौतम के पास पहुंचा और उसने गौतम से पूछा, “क्या ईश्वर है?” गौतम ने उसे देखा और कहा, ”हां”। एक बार फिर शिष्यों के बीच बड़ा संघर्ष शुरू हो गया। सुबह से वे बहुत खुश थे, क्योंकि उन्होंने कहा था कि ईश्वर नहीं है, लेकिन शाम को वह कह रहे हैं कि ईश्वर है। ऐसा क्यों है?
अगर आप यह स्वीकार नहीं कर पाते कि, ‘मैं नहीं जानता हूँ’, तो आपने अपने जीवन में जानने की सभी संभावनाओं को नष्ट कर दिया है। अगर आप वाकई जानना चाहते हैं तो आपको अपने भीतर मुडऩा होगा, अपनी आंतरिक प्रकृति से जुडऩा होगा।
देखिए, अगर आप मुझ पर विश्वास करते हैं, तो आप स्वयं को मूर्ख बना रहे हैं। बिना जाने आप केवल जानने का बहाना करेंगे। अगर आप मुझ पर अविश्वास करते हैं, तो आप जानने की उस संभावना को नष्ट कर देंगे जो आपके अनुभव में नहीं है। आप ईश्वर को जानते हैं, आप जानते हैं कि वह कहाँ रहता है, आप उसका नाम जानते हैं, आप जानते हैं कि उसकी पत्नी कौन है, आप जानते हैं कि उसके बच्चे कितने हैं, आप उसका जन्मदिन जानते हैं, आप जानते हैं कि वह अपने जन्मदिन पर कौन सी मिठाई पसंद करता है। आप सब कुछ जानते हैं, लेकिन आप यह नहीं जानते कि आपके भीतर क्या हो रहा है। दरअसल, यही सारी समस्या है। आप स्वर्ग का पता भी जानते हैं, लेकिन आपको इसका कोई बोध नहीं है कि इस क्षण आपके भीतर क्या हो रहा है।
जो आपके अनुभव में है उसे आप जानते हैं। जो आपके अनुभव में नहीं है, आपको यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि उसका अस्तित्व नहीं है। बस इतना कहिए कि, “मैं ईश्वर को नहीं जानता”। अगर आप इस अवस्था में पहुंच गए हैं, तो विकास अपने आप हो जाएगा। सभी लोग उस बारे में बहस किए जा रहे हैं जिसे वे मूलत: नहीं जानते, क्योंकि कहीं-न-कहीं उन्होंने यह गुण खो दिया है जिससे कि वे पूरी ईमानदारीपूर्वक स्वीकार कर पाएं कि, ‘मैं ईश्वर को नहीं जानता’। अगर आप यह स्वीकार नहीं कर पाते कि, ‘मैं ईश्वर को नहीं जानता हूँ’, तो आपने अपने जीवन में जानने की सभी संभावनाओं को नष्ट कर दिया है। अगर आप वाकई जानना चाहते हैं तो आपको अपने भीतर मुडऩा होगा, अपनी आंतरिक प्रकृति से जुडऩा होगा।