Saturday, May 30, 2009

मेरा सपना

किसी की आँखों मे मोहब्बत का सितारा होगा एक दिन आएगा कि कोई शक्स हमारा होगा कोई जहाँ मेरे लिए मोती भरी सीपियाँ चुनता होगा वो किसी और दुनिया का किनारा होगा काम मुश्किल है मगर जीत ही लूगाँ किसी दिल को मेरे खुदा का अगर ज़रा भी सहारा होगा किसी के होने पर मेरी साँसे चलेगीं कोई तो होगा जिसके बिना ना मेरा गुज़ारा होगा देखो ये अचानक ऊजाला हो चला, दिल कहता है कि शायद किसी ने धीमे से मेरा नाम पुकारा होगा और यहाँ देखो पानी मे चलता एक अन्जान साया, शायद किसी ने दूसरे किनारे पर अपना पैर उतारा होगा कौन रो रहा है रात के सन्नाटे मे शायद मेरे जैसा तन्हाई का कोई मारा होगा अब तो बस उसी किसी एक का इन्तज़ार है, किसी और का ख्याल ना दिल को ग़वारा होगा ऐ ज़िन्दगी! अब के ना शामिल करना मेरा नाम ग़र ये खेल ही दोबारा होगा.........!!!

Friday, May 22, 2009

जिन्दगी ये किस मोड पे ले आयी

ziन्दगी ये किस मोड पे ले आयी है,
ना मा, बाप, बहन, ना यहा कोई भाई है.
हर लडकी का है Boy Friend, हर लडके ने Girl Friend पायी है,
चंद दिनो के है ये रिश्ते, फिर वही रुसवायी है.

घर जाना Home Sickness कहलाता है,
पर Girl Friend से मिलने को टाईम रोज मिल जाता है.
दो दिन से नही पुछा मां की तबीयत का हाल,
Girl Friend से पल-पल की खबर पायी है,
जिन्दगी ये किस मोड पे ले आयी है…..

कभी खुली हवा मे घुमते थे,
अब AC की आदत लगायी है.
धुप हमसे सहन नही होती,
हर कोई देता यही दुहाई है.

मेहनत के काम हम करते नही,
इसीलिये Gym जाने की नौबत आयी है.
McDonalds, PizaaHut जाने लगे,
दाल-रोटी तो मुश्कील से खायी है.
जिन्दगी ये किस मोड पे ले आयी है…..

Work Relation हमने बडाये,
पर दोस्तो की संख्या घटायी है.
Professional ने की है तरक्की,
Social ने मुंह की खायी है.
जिन्दगी ये किस मोड पे ले आयी है

Tuesday, May 5, 2009

ज़िंदगी है छोटी, हर पल में ख़ुश रहो

ज़िंदगी है छोटी, हर पल में ख़ुश रहो...

Office मे ख़ुश रहो, घर में ख़ुश रहो...

आज पनीर नही है दाल में ही ख़ुश रहो...

आज gym जाने का समय नही, दो क़दम चल के ही ख़ुश रहो...

आज दोस्तो का साथ नही, TV देख के ही ख़ुश रहो...

घर जा नही सकते तो फ़ोन कर के ही ख़ुश रहो...

आज कोई नाराज़ है उसके इस अंदाज़ में भी ख़ुश रहो...

जिसे देख नही सकते उसकी आवाज़ में ही ख़ुश रहो...

जिसे पा नही सकते उसकी याद में ही ख़ुश रहो

Laptop ना मिला तो क्या, Desktop में ही ख़ुश रहो...

बीता हुआ कल जा चुका है उसकी मीठी यादें है उनमे ही ख़ुश रहो...

आने वाले पल का पता नही... सपनो में ही ख़ुश रहो...

हसते हसते ये पल बिताएँगे, आज में ही ख़ुश रहो

ज़िंदगी है छोटी, हर पल में ख़ुश रहो

Sunday, May 3, 2009

हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती।

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती।

नन्ही चींटी जब दाना ले के चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है,
मन का विश्वास रगों में साह्स भरता है,
चढ़ कर गिरना, गिर कर चढना, न अखरता है,
आख़िर उसकी महनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।

डुबकियां सिन्धु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर, खाली हाथ लौट आता है,
मिलते न सहज ही मोती पानी में,
बहता दूना उत्साह हैरानी में,
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती।

असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो,
जब तक न सफल हो, नींद चैन की त्यागो तुम,
संघर्षों का मैदान, छोड़ मत भागो तुम,
कुछ किए बिना ही जय जय कार नहीं होती,
हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती।

Saturday, May 2, 2009

काँच की बरनी और दो कप चाय - एक बोध कथा

जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी-जल्दी करने की इच्छा होती है, सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं, उस समय ये बोध कथा , "काँच की बरनी और दो कप चाय" हमें याद आती है ।दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं...उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी (जार) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ... आवाज आई...फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे-छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये, धीरे-धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये, फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्या अब बरनी भर गई है, छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ.. कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया, वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई, अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ.. अब तो पूरी भर गई है.. सभी ने एक स्वर में कहा..सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली, चाय भी रेत के बीच में स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई...प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया - इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो... टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान, परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य और शौक हैं, छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी, कार, बडा़ मकान आदि हैं, और रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार सी बातें, मनमुटाव, झगडे़ है..अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती, या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते, रेत जरूर आ सकती थी...ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है...यदि तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । अपने बच्चों के साथ खेलो, बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ...

Friday, May 1, 2009

दोस्ती की अहमियत

दोस्ती दुनिया की वो ख़ुशी है,
जिसकी ज़रूरत हर किसी को हुई है,
गुजार के देखो कभी अकेले ज़िन्दगी,
फिर खुद जान जाओगे के दोस्ती के बिना ज़िन्दगी भी अधूरी है.

कीसी का दिल तूदना हमारी आदत नहीं
कीसी का दिल दुखाना हमारी फिरात नहीं
भरोसा रखना हम पर तुम
दोस्त कह कर कीसी को यूह,हम बदलते नहीं

हर कुशी दिल के करीब नहीं होती,
ज़िन्दगी घुमो से दूर नहीं होती,
आये दोस्त मेरी दोस्ती को संभल कर रक,
हमारी दोस्ती हर किसी को नसीब नहीं होती...

तेरी दोस्ती हम इस तरह निधायेंगे तुम रोज़ खफा होना
हम रोज़ मनायेंगे पर मान जाना मनाने से
वरना यह भीगी पलकें ले के कहा जायेंगे..

इतना प्यार पाया है आप से...
उस से ज्यादा पाने को जी चाहता है...
नजाने वो कौन सी खोबी है आप में.
की अप से दोस्ती निभाने को जी चाहता है...

Thursday, April 23, 2009

नसीहत

किसी के इतने पास न जा
के दूर जाना खौफ़ बन जाये
एक कदम पीछे देखने पर
सीधा रास्ता भी खाई नज़र आये

किसी को इतना अपना न बना
कि उसे खोने का डर लगा रहे
इसी डर के बीच एक दिन ऐसा न आये
तु पल पल खुद को ही खोने लगे

किसी के इतने सपने न देख
के काली रात भी रन्गीली लगे
आन्ख खुले तो बर्दाश्त न हो
जब सपना टूट टूट कर बिखरने लगे

किसी को इतना प्यार न कर
के बैठे बैठे आन्ख नम हो जाये
उसे गर मिले एक दर्द
इधर जिन्दगी के दो पल कम हो जाये

किसी के बारे मे इतना न सोच
कि सोच का मतलब ही वो बन जाये
भीड के बीच भी
लगे तन्हाई से जकडे गये

किसी को इतना याद न कर
कि जहा देखो वोही नज़र आये
राह देख देख कर कही ऐसा न हो
जिन्दगी पीछे छूट जाये