Tuesday, July 22, 2008

त्राहिमाम ! त्राहिमाम ! त्राहिमाम !

त्राहिमाम ! त्राहिमाम! त्राहिमाम!
महान कवि हरिवंश राय बच्चन जी की कविता की पंक्तियाँ हैं ये महान दृश्य है, चल रहा मनुष्य है,अश्रु, श्वेद, रक्त सेलथ पथ, लथ पथ, लथ पथअग्निपथ ! अग्निपथ ! अग्निपथ!.किन्तु आज के संदर्भ मे एस कविता को इस प्रकार लिखना होगा ..... ........अरे ,रुको जरा देखो यह कैसा वीभत्स द्रश्य है,मर रहा मनुष्य हैं .अश्रु, श्वेद, रक्त सेलथ पथ, लथ पथ, लथ पथअग्निपथ ! अग्निपथ ! अग्निपथ !......रेलपथ !रेलपथ !आदमी की दिव्य देह ,दे रही दुर्गन्ध राजनिति की वासना ,ले रही आनंद .....कुत्ते चील भी करने लगे उल्टियाथम गई ,गड़ गई ...............दौड़ती रेल गाडियाँ मर नही सकता कोई भी देश फिर से चल पड़ेगा ...इसी उम्मीद पर तो कल टिका हैं जाति के कब टूटेंगे बन्धन ...सिर्फ एक सपना हैं जातियों के घ्रणित चक्रव्यूह मे फँसाकर देश को,हंस रहें है ..राजनिति के खूनी भेडिये...शायद सो रहें हैं भगवान भी ,त्राहिमाम ! त्राहिमाम! त्राहिमाम! .

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