Saturday, July 12, 2008

मेरी तलाश .............................


वो जो खुली पड़ी खिड़कियाँ थी,वहा अब एक साया सा दिखने लगा था..बेचारी खिड़की का सूनापन अब दूर होने लगा था...जानी अनजानी रहो से अब वो शख्स साफ होने लगा था...और साफ देखने के लिए मैंने अपने चश्मे की धूल साफ कर ली...वो बरामदे की खुली खिड़कियों से रोज़ झाँका करता था...कभी कभी वो हाथ हिलाकर मुझे आमंत्रित भी करता था...और उसके हाव भाव भी मुझसे काफी मिलते थे...जब भी में "उदास" होता वो मुझे बुलाता था....में अचंभित आशंकित वहाँ जाने से डरता था....एक दिन वो साया खिड़की से गायब था...काफी ढूँढा पर...पर खिड़की का सूनापन दूर न हुआ...थककर बैठा.....देखा वो मेरे सामने खडा था...एक असीम उर्जा का अनुभाव किया मैंने....पूरा कमरा प्रकाश से भर गया...वो धीरे धीरे पास आकर मुझमे विलीन हो गया... ये वो "दिव्य अंश" था....."जिससे मेरी उत्त्पत्ति हुई थी..."हाँ....यह में हूँ...उस देवता का स्वरूप....भटका हुआ इंसान....आज मानव शरीर लिए उसी "दिव्यता" को ढूँढ रहा हूँ..........!

No comments: